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हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में मुद्रण :

इस समय प्रचलित प्रायः सभी प्रिंटरों में हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में मुद्रण संभव है, लेकिन डॉट मैट्रिक्स प्रिंटरों में मुद्रण की गति अंग्रेजी की तुलना में कम हो जाती है । इसका मुख्य कारण यह है कि भारतीय भाषाओं में संसाधन के लिए तैयार किए गए सभी सॉफ्टवेयर ग्राफिक्स मोड में काम करते हैं और भारतीय लिपियों में मात्राओं का समावेश होने के कारण मुद्रण भी उसी तरह होता है, जबकि अंग्रेजी अक्षरों के मामले में ऐसी स्थिति नहीं है और मुद्रण भी द्यड्ढन्द्यमोड में होता है । उल्लेखनीय है कि डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर पर ग्राफिक्स मोड में (विंडोज़ आदि पर) अंग्रेजी के मुद्रण की गति भी धीमी हो जाती है । लेकिन 24 पिन डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर में मुद्रण की गति अपेक्षाकृत तेज़ होती है और लेज़र प्रिंटरों पर अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं में मुद्रण की गति में कोई अन्तर नहीं रहता है ।

कम्प्यूटर प्रशिक्षण :

भारतीय समाज में कम्प्यूटरों का प्रयोग अधिक लोकप्रिय हो जाने के कारण पिछले कुछ वर्षों के दौरान कम्प्यूटर शिक्षा की ओर झुकाव बढ़ गया है और सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के विभिन्न संगठनों द्वारा यह शिक्षा दी जा रही है । लेकिन यह शिक्षा अभी तक प्रधानतः अंग्रेजी माध्यम से ही दी जा रही है । किन्तु, इलेक्ट्रॉनिकी विभाग की सहायता से निम्नलिखित संस्थानों में कम्प्यूटर अनुप्रयोगों में स्नातकोत्तर डिप्लोमा (PGDCA) (हिन्दी) के पाठ्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं :

1. वनस्थली विद्यापीठ, वनस्थली - 304 022, राजस्थान
2. बरेली कालेज, बरेली - 243 005, उत्तर प्रदेश
3. भोपाल विश्वविद्यालय, भोपाल - 462 026, मध्य प्रदेश
4. दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, कराईकडी, हैदराबाद - 500 004, आंध्र प्रदेश
5. दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, टी.नगर, मद्रास - 600 017, तमिलनाडु
6. भारतीय व्यवसाय प्रबंध संस्थान, बुद्ध मार्ग, पटना - 800 001, बिहार
7. समाज शास्त्र संस्थान, आगरा विश्वविद्यालय, पालीवाल पार्क, आगरा - 282 004, उत्तर प्रदेश
8. काशी विद्यापीठ, वाराणसी - 221 002, उत्तर प्रदेश
9. एम.एल.के.पी.जी.कालेज, बलरामपुर - 271 201, उत्तर प्रदेश

उपर्युक्त के अलावा, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली भी शीघ्र ही हिन्दी माध्यम से कम्प्यूटर पाठ्यक्रम आरम्भ कर रहा है ।

कम्प्यूटर पर हिन्दी में पुस्तकें

भारत में कम्प्यूटर का प्रचलन हाल के वर्षों में तेज गति से हुआ है । इस विषय पर जो भी पुस्तकें उपलब्ध हैं, उनमें से अधिकांश का प्रकाशन विदेशों में हुआ । भारत में भी लिखी गई पुस्तकों का माध्यम अधिकांश मामलों में अंग्रेजी ही है । कम्प्यूटर तथा इलेक्ट्रॉनिकी विषयों पर हिन्दी में पुस्तकों की उपलब्धता में वृद्धि करने के उद्देश्य से इलेक्ट्रॉनिकी विभाग ने निम्नलिखित 3 योजनाएँ आरम्भ की हैं, जिनमें भारत तथा विदेशों में रहने वाला कोई भी व्यक्ति भाग ले सकता है ।
क. मौलिक पुस्तकें लिखने के लिए इलेक्ट्रॉनिकी विभाग द्वारा प्रायोजित वित्तीय सहायता योजना :
इस योजना के अन्तर्गत पुस्तकें लिखने के लिए प्रत्येक लेखक को 7500/- रुपए की वित्तीय सहायता के अलावा लेखन-सामग्री, टाइपिंग आदि पर होने वाले व्यय की 1000/- रुपए तक प्रतिपूर्ति तथा डायग्राम/ट्रांसपेरेंसिय्ाों के प्रयोग के लिए 1500/- रुपए की अतिरिक्त राशि का भुगतान किया जाता है ।
ख. पुस्तकों का अनुवाद करने के लिए इलेक्ट्रॉनिकी विभाग द्वारा प्रायोजित वित्तीय सहायता योजना :
इस योजना के अन्तर्गत कम्प्यूटर तथा इलेक्ट्रॉनिकी के विभिन्न विषयों पर भारतीय लेखकों द्वारा लिखी पुस्तकों के अनुवाद के लिए प्रत्येक पुस्तक पर 4000/- रुपए तक की वित्तीय सहायता दी जाती है ।
ग. सर्वोत्कृष्ट मौलिक पुस्तकों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार योजना :
इस योजना के अन्तर्गत कम्प्यूटर तथा इलेक्ट्रॉनिकी विषयों पर हिन्दी में लिखी सर्वोत्कृष्ट मौलिक पुस्तकों को प्रत्येक कैलेण्डर वर्ष में निम्नलिखित 3 पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं :
प्रथम पुरस्कार - 20,000/- रुपए
द्वितीय पुरस्कार - 15,000/- रुपए
तृतीय पुरस्कार - 10,000/- रुपए
प्रोत्साहन पुरस्कार - 5,000/-रुपए

भाषाविदों के दृष्टिकोण से कम्प्यूटर

कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी में हाल के वर्षों में जो अनुप्रयोग उन्मुख प्रगति हुई है उससे यह स्पष्ट हो गया है कि भाषा विज्ञान के क्षेत्र में भी कम्प्यूटर का इस्तेमाल लाभप्रद रूप से किया जा सकता है । भाषाविदों ने सभी प्रकार के गुणात्मक विश्लेषण जैसे कि आवृत्ति गणना, शब्द गणना, विषय सूची तैयार करने आदि के लिए कम्प्यूटर को एक बहुत ही प्रभावशाली साधन के रूप में पाया है ।
लेकिन वास्तविक भाषा विज्ञान की स्थितियों में भी कम्प्यूटर के कई ऐसे अनुप्रयोग हैं जिनमें भाषाविदों तथा कम्प्यूटर विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है । इस दिशा में इलेक्ट्रॉनिकी विभाग ने 'भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास' (च्र्क़्क्ष्ख्र्)नामक एक कार्यक्रम शुरू किया है और कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों को चुना है । इस कार्यक्रम के उद्देश्य तथा इसके अन्तर्गत चुने गए महत्वपूर्ण क्षेत्र, जहाँ परियोजनाएँ शुरू की गई हैं, नीचे दिए अनुसार हैं :-

उद्देश्य
क) मानव और मशीन के बीच पारस्परिक सम्पर्क को आसान बनाने, भारतीय भाषाओं में सूचना संसाधन की सुविधा प्रदान करने के लिए प्रौद्योगिकी साधनों का विकास करना तथा बहुभाषी ज्ञानार्जन प्रणालियों का विकास करना।
ख) भाषाओं के अध्ययन तथा शोध कार्यों के लिए सूचना प्रौद्योगिकी साधनों के प्रयोग को बढ़ावा देना ।
ग) भारतीय भाषाओं में सूचना संसाधन के क्षेत्र में अनुसंधान तथा विकास के प्रयासों को बढ़ावा देना तथा कुछ विशिष्ट महत्वपूर्ण क्षेत्रों अर्थात अनुवाद, मानव-मशीन इंटरफेस, भाषा अध्ययन तथा प्राकृतिक भाषा संसाधन आदि में अनुसंधान तथा विकास के कार्य करने के लिए केन्द्रों का चयन करना ।
इस कार्यक्रम के उपर्युक्त उद्देश्यों को हासिल करने के लिए कुछ प्रमुख महत्वपूर्ण क्षेत्र चुने गए हैं और उनपर कार्य शुरू किए गए हैं, जो इस प्रकार हैं :

1. मशीनी अनुवाद प्रणाली
भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद के लिए कन्नड़ से हिन्दी में अऩुवाद प्रणाली का प्रदर्शन कर दिया गया है । तेलुगू, मलयालम तथा तमिल से हिन्दी में अनुवाद की प्रोटोटाइप प्रणालियाँ भी परीक्षण के तौर पर चलाए जाने के लिए तैयार हैं । 16 भाषाओं में 30 लाख शब्दों का मशीन में पढ़े जा सकने वाले शब्द संग्रह तैयार करने की योजना है, जो मशीनी अनुवाद में सहायक होगा ।

2. मानव मशीन इंटरफेस प्रणालियाँ
सन प्लेटफार्म पर कार्य कर सकने वाली देवनागरी में हस्तलिखित अथवा मुद्रित (प्रकाशित) अक्षर पहचान प्रणाली के प्रोटोटाइप माड्यूल का विकास कर लिया गया है । ध्वनि की विशिष्टियों के आधार पर 1000 बोल्ाचाल की हिन्दी शब्दों का भी विकास कर लिया गया है ।
3. प्राकृतिक भाषा संसाधन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम
ये पाठ्यक्रम भाषा विज्ञान के लिए तथा शिक्षकों के लिए 7 केन्द्रों में आरम्भ किए गए तथा लगभग 500 शिक्षकों को इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रशिक्षण प्रदान किया गया ।
4. कम्प्यूटर साधित ज्ञानार्जन तथा शिक्षण
बी.एड/एम.एड. के स्तर पर ये पाठ्यक्रम आरम्भ करने के लिए चार स्रोत केन्द्रों को चुना गया है, जिनमें 215 छात्रों ने भाग लिया है । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 175 शिक्षकों के भी प्रशिक्षित किया गया है ।
5. प्राकृतिक भाषा संसाधन के मूल तत्व
शब्दबोध में प्रथमा एवं द्वितीया विभक्तियों का विश्लेषण कर लिया गया है । पाणिनी के मूल सिद्धान्तों के आधार पर तैयार किसी भी विभक्ति, संज्ञा तथा क्रिया रूपों के निर्माण, विश्लेषण तथा पहचान के माड्यूल पूरे कर लिए गए हैं ।
उल्लेखनीय है कि उपर्युक्त सभी क्षेत्रों में अनुसंधान तथा विकास में विभिन्न शैक्षिक और अनुसंधान तथा विकास संगठन कार्य कर रहे हैं । इनमें और आगे कार्य जारी है तथा इन विकास कार्यों के लिए अपेक्षित धनराशि भी इलेक्ट्रॉनिकी विभाग द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है ।

निष्कर्ष

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सुविधाएँ उपलब्ध कराने की दिशा में काफी प्रगति कर ली गई है तथा आगे भी किए जा रहे हैं, और हिन्दी तथा भारतीय भाषाएँ कम्प्यूटर की पहुँच से बाहर नहीं रह गई हैं । अब कोई भी व्यक्ति कम्प्यूटरों पर अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में भी काम कर सकता है । लेकिन फिर भी, इसका प्रयोग और आसान बनाने, अंग्रेजी का ज्ञान नहीं रखने वाली जनता को भी यह सुविधा मुहैय्या कराने तथा गति, क्वालिटी आदि की दृष्टि से भारतीय भाषाओं में संसाधन को अंग्रेजी के समतुल्य बनाने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए :

::सभी श्रेणी के प्रयोगकर्ताओं के लिए कम्प्यूटर प्रणालियों पर प्रशिक्षण;
::सभी स्तरों पर विभिन्न संगठनों में हिन्दी/मातृभाषा के माध्यम से कम्प्यूटर पाठ्यक्रम;
::हिन्दी/मातृभाषा में शिक्षण सामग्रियों/पुस्तकों का विकास;
::हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में प्रचालन प्रणाली का विकास;
::डेटा अन्तरण की सुविधा के लिए मानकीकृत कोड के अनुपालन पर जोर;
::तीव्र गति में मुद्रण के लिए कम कीमत वाले प्रिंटरों का विकास ।

टिप्पणी :इस लेख का प्रकाशन इलेक्ट्रॉनिकी विभाग की 'इलेक्ट्रॉनिकी भारती' नामक पत्रिका के जनवरी-मार्च, 1997 के अंक में किया गया है ।

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